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नोएडा की निराला सोसाइटी में छठ पूजा का पर्व: जब शहर में बसी नदी, और पूल बना घाट

छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि भावनाओं, परंपराओं और आस्था का संगम है।

लेकिन हर कोई अपने गांव नहीं जा पाता — नौकरी, पढ़ाई या अन्य जिम्मेदारियों के चलते कई लोग शहरों में ही रह जाते हैं।

नोएडा की निराला सोसाइटी ऐसे ही प्रवासियों के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है। यहां हर साल छठ पूजा इतनी भव्यता से मनाई जाती है कि लोगों को अपने गांव की कमी महसूस नहीं होती।

जब स्विमिंग पूल बदल जाता है ‘छठ घाट’ में

निराला सोसाइटी की सबसे अनोखी झलक तब देखने को मिलती है जब सोसाइटी का स्विमिंग पूल नदी के घाट का रूप ले लेता है।

पूरे पूल को केले के पेड़ों, आम के पत्तों, फूलों की मालाओं और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है।

दीपक की लौ और जल में पड़ती सूर्य की परछाईं मिलकर एक अद्भुत दृश्य रचती हैं — मानो शहर के बीचोंबीच गंगा उतर आई हो।

 सिर्फ पूजा नहीं, एक सांस्कृतिक उत्सव

निराला सोसाइटी की छठ पूजा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गई है।

बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और यहां तक कि महाराष्ट्र और बंगाल से आए लोग भी इसमें शामिल होते हैं।

सब मिलकर एक दूसरे के साथ प्रसाद बांटते हैं — ठेकुआ, कसार, पूड़ी और कद्दू की सब्जी की खुशबू हर घर तक पहुंचती है।


लोकगीतों और परंपराओं की गूंज

पूरे आयोजन के दौरान भोजपुरी लोकगीतों की गूंज निराला सोसाइटी को एक जीवंत सांस्कृतिक मंच बना देती है।

महिलाएं "केलवा जे फरेला घवद से ओ पिहवा..." जैसे गीत गाती हैं और आसपास के लोग तालियाँ बजाते हैं।

कई स्थानीय कलाकार भी इस मौके पर अपनी प्रस्तुति देते हैं, जिससे माहौल और भी रंगीन बन जाता है।

आस्था और आधुनिकता का अनोखा संगम

निराला सोसाइटी का यह आयोजन दिखाता है कि परंपराएं सिर्फ गांवों की सीमाओं में कैद नहीं हैं।

आधुनिक शहरों में भी लोग अपनी जड़ों से जुड़े रह सकते हैं, बस जरूरत है सामूहिक भावना और समर्पण की।

सोशल मीडिया पर निराला सोसाइटी की छठ पूजा की तस्वीरें और वीडियो खूब वायरल होते हैं —

लोग इसे "नोएडा का मिनी बिहार" और "शहर के बीच बसा गांव" कहकर सराहते हैं।

एकता और भाईचारे की मिसाल

इस आयोजन का सबसे सुंदर पहलू यह है कि यह सिर्फ बिहार या यूपी के लोगों तक सीमित नहीं है।

हर धर्म, हर भाषा के लोग इसमें शामिल होकर एकता और भाईचारे का संदेश देते हैं।

सभी परिवार एक दूसरे को ‘छठ की शुभकामनाएं’ देते हैं और साथ मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

समापन: शहर में आस्था का त्योहार

जब अंतिम दिन सूर्योदय के साथ उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, तो हर चेहरा मुस्कुराता है —

क्योंकि यह सिर्फ पूजा का अंत नहीं, बल्कि उस भाव का उत्सव है जो लोगों को अपनेपन की डोर से जोड़ता है।

निराला सोसाइटी ने साबित किया है कि अगर भावना सच्ची हो, तो शहर भी गांव बन सकता है और पूल भी नदी।